तीन तलाक पर बने कानून के ऊपर पूरी जानकारी
ट्रिपल यानी तीन तलाक ने पिछले कुछ समय से पूरे देश में कोहराम मचा रखा है। ट्रिपल तलाक कानून के आने से पहले तक अखबार में भी इस तरह की ख़बरें आना सामान्य थी जैसे पत्नी के च्युइंगम खाने से इंकार करने पर पति ने दिया तीन तलाक, पुलिस ने दर्ज किया मामला या बीवी को मायके में छोड़ दिया और फिर फोन करके कहा- तलाक..तलाक..तलाक, मामला दर्ज।
कुछ दिनों पहले सर्वोच्च न्यायालय ने तीन तलाक पर रोक लगा दी और केंद्र सरकार को भी इसको लेकर नए कानून बनाने के लिए कहा था। इसको लेकर आये सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद मुस्लिम समुदाय भी दो भागों में बंट गया है। कुछ लोग इसका समर्थन कर रहे हैं तो कुछ इसके विरोध में हैं।
हालांकि हमारे देश में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। जब भी किसी कानून में परिवर्तन होता है तो ऐसे में लोगों का मत अलग-अलग होना स्वाभाविक है लेकिन इसको लेकर केंद्र सरकार और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बीच में अभी भी संघर्ष और तनाव जारी है। अगर आपके लिए यह तीन तलाक या ट्रिपल तलाक शब्द नए हैं या आप इसके बारे में अधिक नहीं जानते तो आज हम आपको इसके बारे में पूरी जानकारी देंगे। सबसे पहले जानिए कि तीन तलाक आखिर है क्या।
क्या है तीन या ट्रिपल तलाक
मुस्लिम समाज में बिना निकाह के किसी भी पुरुष और महिला के एक दूसरे के साथ रहने को गुनाह यानी अपराध माना गया है। निकाह के बाद ही कोई पुरुष किसी महिला के साथ रह सकता है। यही नहीं, मुस्लिम समाज में पुरुष को एक से अधिक निकाह करने की भी अनुमति है। दो परिवारों की सहमति के बाद ही निकाह होता है लेकिन अगर निकाह के बाद कोई मतभेद हो जाए या पुरुष किसी भी वजह से अपनी पत्नी को तलाक देना चाहे तो वो:
- पति अपनी पत्नी को केवल तीन बार तलाक बोल कर उससे तलाक ले सकता था।
- मैसेज में लिख कर या फ़ोन पर भी अगर तीन बार तलाक बोल दे तो उसे भी तलाक माना जाता था।
- अगर कोई कागज, चिठ्ठी पर भी तीन बार तलाक लिख कर अपनी पत्नी तक पहुंचा दे तो इसे भी तलाक कहा जाता था।
इस तलाक को तलाक उल बिदअत भी कहा जाता है। इस तलाक को इस्लामिक कानून में मान्यता मिली हुई है और इस तरह के तलाक को पति और पत्नी दोनों को मानना पड़ता है लेकिन मुस्लिम महिलाएं अक्सर इसका विरोध करती रही हैं क्योंकि इसमें उनकी मर्जी या खुशी शामिल नहीं होती। लेकिन अब ट्रिपल यानी तीन तलाक को हमारे देश में पूरी तरह से असंवैधानिक और गैरकानूनी घोषित कर दिया गया है।
बिदअत का अर्थ
तलाक उल बिदअत में बिदअत का मतलब है ऐसा काम जिसे इस्लाम का हिस्सा समझ कर पुराने कई सालों से किया जाता रहा है। लेकिन जानकारों और विशेषज्ञों की मानी जाए तो कुरान और हदीस में तीन तलाक का कोई वर्णन नहीं है। फिर भी इसे लोग मानते और अपनाते हैं। लेकिन महिलाओं के लिए इस तलाक को अच्छा नहीं माना जाता है क्योंकि यह महिलाओं के हक में नहीं है। इस्लाम में तलाक देने के अन्य कई तरीके हैं जिन्हे महिलाओं के हक में माना जाता है।
तलाक का इस्लाम में इतिहास
ऐसा कहा जाता है कि पुराने जमाने में इस्लाम में स्त्रियों के साथ बहुत बुरा सुलूक हुआ करता था। उस दौरान महिलाओं को गुलामों की तरह रखा, खरीदा और बेचा जाता था। इस समय महिलाओं के पास कोई भी अधिकार नहीं हुआ करते थे। रुपए-पैसे के लिए भी वे केवल अपने पति पर ही निर्भर थी। अगर उनका तलाक हो जाता था तो आर्थिक रूप से महिला को बहुत सी परेशानियों से गुजरना पड़ता था।
महिलाओं की इस स्थिति को देखते हुए पैगम्बर हजरत मोहम्मद तलाक-ए-अहसन का प्रस्ताव लाये। तलाक-ए-अहसन के तहत इसमें तीन बार तलाक नहीं बोलना पड़ता। इसमें एक बार तलाक कह कर तीन महीने रुकना पड़ता है। अगर इन तीन महीनों में भी पति-पत्नी के संबंध नहीं सुधरते तो तलाक हो जाता है। इस तरह से स्त्री को भी एक मौका मिलता था और पति-पत्नी की खुशी व इच्छा से यह तलाक होता है। तीन तलाक ही नहीं बल्कि इस्लाम में कई अन्य तलाक के तरीके भी है जैसे कि तलाक-ए-अहसन, तलाक-ए-हसन, तलाक-ए-मुबारत।
अन्य देशों में तीन तलाक
दुनिया भर के लगभग 22 देशों ने तीन तलाक को बैन कर दिया है जिसमें पाकिस्तान, ईरान, मोरक्को, कतर आदि शामिल हैं। इसमें मिस्र दुनिया का पहला देश है जिसने तीन तलाक को बैन किया। वहीं पाकिस्तान ने भी 1956 में इसे बैन कर दिया था। कई देशों में अगर कोई व्यक्ति तीन बार भी तलाक कहता है तो भी उसे एक ही बार माना जाता है। उसके बाद दोनों पति-पत्नी को समय दिया जाता है। यही नहीं, आप बोले गए तलाक को वापस भी ले सकते हैं। सूडान में इस्लाम मानने वाले लोग सबसे अधिक हैं लेकिन वहां भी तीन तलाक को नहीं माना जाता।
भारत में ट्रिपल तलाक
आंकड़ों के अनुसार भारत में तलाकशुदा मुसलमान महिलाओं की गिनती केवल 24 प्रतिशत है। इनमें से बहुत कम हैं जिनका तलाक ट्रिपल तलाक से हुआ है। भारत में भी तलाक अधिकतर तलाक-ए-अहसन, तलाक-ए-हसन, तलाक-ए-मुबारत से होता है।
तीन तलाक कानून क्या है?
हमारे न्यायालय के अनुसार ‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक’ के अंतर्गत ट्रिपल तलाक पूरी तरह से असंवैधानिक है। इसीलिए इस साल ट्रिपल तलाक को पूरी तरह से बैन कर दिया गया। लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड हमेशा से ही ट्रिपल तलाक के पक्ष में है। उनका कहना है कि ट्रिपल तलाक बैन करने से मुस्लिम पतियों को तंग किया जा रहा है। हालांकि तीन तलाक कुरान और हदीस का हिस्सा नहीं है इसके बाद भी वो इसके बैन होने पर इतने परेशान हैं।
मोदी सरकार द्वारा बनाये गए नएतीन तलाक कानून के अनुसार:
- अगर कोई पति अपनी पत्नी को किसी भी माध्यम या सामने से तीन तलाक देता है तो पुलिस उसे बिना किसी वारंट के जेल में डाल सकती है। मोबाइल या किसी अन्य तरीके से अपनी पत्नी को तीन तलाक देना मान्य नहीं होगा।
- केवल मजिस्ट्रेट कोर्ट से ही आरोपी को जमानत मिलेगी लेकिन मजिस्ट्रेट भी पीड़ित महिला के पक्ष को सुने बिना पति को जमानत नहीं दे सकते।
- इस बिल के अनुसार आरोपी को तीन साल की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
- तीन तलाक की शिकायत खुद महिला या इसका कोई करीबी रिश्तेदार कर सकता है।
- तलाक होने की सूरत में पति से पत्नी को को कितना गुजारा भत्ता दिया जाएगा यह भी मजिस्ट्रेट ही तय करेंगे।
- तीन तलाक देने पर नाबालिग बच्चे अपनी माँ के पास रहेंगे।
- अगर पत्नी मजिस्ट्रेट से अनुरोध करे तभी पति-पत्नी के बीच समझौता हो सकता है।
- कोई पड़ोसी या अन्य व्यक्ति इसके बारे में शिकायत दर्ज नहीं करा सकता।
केंद्र सरकार ने तीन तलाक से जुड़े बिल को लोकसभा और राज्यसभा में पास करवा लिया है और इस साल इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ ही यह बिल कानून बना। यह कानून बनने से 19 सितंबर 2018 के बाद तीन तलाक से जुड़े हुए जितने भी मामले में आए हैं, उन सभी का निपटारा इसी कानून के अधीन किया जाएगा।
आज महिलाएं हर जगह पर पुरुषों के बराबर काम कर रही हैं। ऐसे में तीन तलाक जैसी प्रथाएं न केवल महिलाओं का शोषण कर रही हैं बल्कि इनसे उनका आत्मविश्वास भी कम हो रहा है। न्यायालय व सरकार ने जो फैसला लिया है उसके बाद आम आदमी भी इस्लाम और उनकी प्रथाओं के बारे में अधिक जान पायेगा। यह कानून पूरी तरह से महिलाओं के पक्ष में है।
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