पीरियड आने के लक्षण क्या है? जानिए मासिक धर्म चक्कर के बारे में पूरी जानकारी
मासिक धर्म को कई नामों से जाना जाता (Periods Meaning In Hindi) है जैसे महावारी, पीरियड्स, रजोधर्म आदि। यह महिला में होने वाली एक प्राकृतिक क्रिया है जिसके बारे में हर बढ़ती उम्र की लड़कियों को जानकारी होनी (Masik Dharm In Hindi) चाहिए। परंतु आज भी कई लड़कियां ऐसी है जिनको मासिक धर्म के बारे में पूरी जानकारी नहीं है जिससे उनका ऐसे समय में शारीरिक और मानसिक बदलाव को अपनाना और भी कठिन हो जाता है।
मासिक धर्म के बारें में जानकारी (Periods Ke Bare Mein Jankari)
मासिक धर्म क्या है? (Periods Kya Hota Hai)
युवावस्था के दौरान लड़कियों के शरीर में सबसे अहम बदलाव होने वाला होता है। मासिक धर्म का शुरू होना महिलाओं के शरीर में हारमोंस में होने वाले बदलाव की वजह से होता (Masik Dharm Kya Hai) है। परंतु यह मासिक धर्म सभी लड़कियों को एक ही उम्र में नहीं होता अर्थात सभी लड़कियों को यह अलग-अलग आयु में शुरू हो सकता है।
लड़कियों में मासिक धर्म 8 से 17 वर्ष की उम्र के बीच शुरू होता होता है परंतु कई विकसित देशों में लड़कियों में पहला मासिक धर्म 12 से 13 साल की उम्र में शुरू होता है। वैसे ज्यादातर इसकी शुरू होने की उम्र 11 से लेकर 13 साल की होती है।
मासिक धर्म कब शुरू होगा? (Masik Dharm Kab Aata Hai)
यह कई अन्य बातों पर निर्भर करता है जैसे वहां की जलवायु, लड़की का खान पान, उसका रहने सहने का तरीका, उसके काम करने का तरीका और लड़की के कपड़ो की रचना पर भी यह निर्भर करता है। मासिक धर्म महीने में एक बार आता है और इसका चक्कर काल 28 से लेकर 35 दिनों के बीच में चलता है।
यह मासिक धर्म लड़कियों में हर महीने आता है और जब महिला गर्भ धारण कर लेती है तो यह मासिक धर्म 9 महीने के लिए रुक जाता है और फिर प्रसव होने के बाद किसी को दो-तीन महीने बाद तो किसी को 6 महीने बाद आना शुरू होता है। महावारी कई लड़कियों या महिलाओं को तो 3 से 5 दिन तक रहती है या फिर किसी को 3 से 7 दिन तक भी रहती है।
मासिक धर्म क्यों होता है? (Periods Kyu Hote Hai)
मासिक धर्म आना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और जब यह मासिक धर्म लड़कियों में आने शुरू होते है तो इसका मतलब यह है कि उनके अंडाशय का विकसित हो जाना। अंडाशय का विकसित होना यह दर्शाता है कि वह लड़कियां अंडा बनाने की योग्य हो गई हैं यानी प्रजनन के अंग पूरी तरह से विकसित हो चुके हैं।
मासिक धर्म की प्रक्रिया का एक अहम रोल होता है गर्भधारण करने में सहायता करना। मासिक चक्र शुरू होने पर हर महीने महिलाओं के दो अंडाशय में से कोई एक अंडा बना के गर्भाशय नाल में रिलीज करता है जिसे ओवूलेशन कहते हैं। इसके साथ-साथ शरीर दो तरह के हारमोंस एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन उत्पन्न करने लगते हैं और इन हारमोंस की वजह से हर महीने में एक बार गर्भाशय की परत मोटी होने लगती है जिसे गर्भधारण होने पर फ़र्टिलाइज़र अंडा उस परत से लगकर पोषण प्राप्त करता है। यह परत रक्त और म्यूकस से बनी होती है और जब यही अंडा नर शुक्राणु से मिलकर फर्टिलाइज नहीं हो पाता है तब गर्भाशय की परत उस अंडे के साथ रक्त के रूप में योनि से बाहर निकलने लगती है। इस क्रिया को महावारी या मासिक धर्म कहते हैं।
महावारी के लक्षण (Masik Dharm Ke Lakshan)
- माहवारी से पहले महिला के पेट में दर्द होना या फिर एंटन होना।
- मासिक धर्म शुरू होने से पहले डायरिया या उल्टी होने की समस्या भी हो सकती है।
- कई महिलाओं के मासिक धर्म शुरू होने से पहले पीठ भी दर्द करने लगती है।
- कुछ महिलाओं की तो मासिक धर्म से पहले भूख बढ़ जाती है जिससे वे ज्यादा खाने लग जाती हैं।
हार्मोन के परिवर्तन
मासिक धर्म के दौरान शुरुआत में एस्ट्रोजन नामक हारमोंस बढ़ना शुरू होते हैं और यह हारमोंस महिलाओं के लिए बहुत लाभदायक होते हैं क्योंकि एक तो यह महिलाओं के शरीर को समझ सकते हैं और दूसरा यह हड्डियों को मजबूत बनाते हैं। इसके अलावा यह हारमोंस गर्भाशय की अंदरूनी दीवार पर रक्त और टिशूज की एक मखमली परत बनाते हैं ताकि भ्रूण वहां पर पोषण पाकर जल्दी से विकसित हो सके। यह परत रक्त और टिश्यूस से निर्मित होती है।
ब्लीडिंग
जब मासिक धर्म शुरू होते हैं तो हर महिला के मन में यह सवाल उठता है कि ब्लीडिंग कितनी होनी चाहिए, कितने दिन तक होनी चाहिए, सामान्य ब्लीडिंग कितने दिन तक होती है आदि। सामान्य तौर पर मासिक चक्र 28 से 35 साल तक तक चलता है और इसके आने का समय’ 21 से 45 दिन में हो सकता है।
मासिक धर्म के दिन की गिनती पीरियड्स शुरू होने के पहले दिन से अगले पीरियड्स शुरू होने के पहले दिन तक की जाती है। वैसे यह पीरियड्स सामान्य तौर पर 3 से 5 दिन तक रहते हैं परंतु यह कोई जरूरी नहीं है कि मासिक चक्र हर बार समान ही रहे और ब्लीडिंग भी सामान्य ही होनी चाहिए। मासिक धर्म में निकलने वाला स्राव सिर्फ रक्त नहीं होता बल्कि इसमें नष्ट हो चुके टिशूज भी शामिल होते हैं।
अनियमित माहवारी
मासिक धर्म में सबसे अहम बीमारी है अनियमित महावारी। यह कई कारणों से हो सकती है, जो इस प्रकार है:
- मासिक चक्र का 21 दिनों से छोटा होना या फिर 35 दिन से ज्यादा होना।
- माहवारी के समय रक्त स्राव का सामान्य से ज्यादा होना।
- मासिक चक्र का हर बार बदल जाना।
- तीन या इससे अधिक महीने तक महावरी न आना।
- दो महावरी के बीच में अनियमित रूप से रक्त स्राव होना।
मेनोरेजिया या भारी रक्त स्राव
जब महावारी के समय रक्त सामान्य से ज्यादा खराब होता है या फिर 7 दिन से भी ज्यादा रक्त स्राव चलता रहता है तो इसे मेडिकल की भाषा में मेनोरेजिया या भारी रक्त स्राव कहते हैं। इसलिए आपको इस बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। अगर पूरी जानकारी ना हो तो कई बार थोड़ी सी भी ज्यादा ब्लीडिंग होने पर ही हम यह समझने लगते हैं कि कोई समस्या है परंतु ऐसा नहीं है क्योंकि मेरोरेजिया के कुछ अलग लक्षण होते हैं जैसे कि:
- ब्लीडिंग का इतना ज्यादा होना की हर घंटे में पैड बदलना पड़े।
- ब्लीडिंग का हफ्ते भर से ज्यादा होना।
- बिल्डिंग के साथ थक्को का भी बाहर निकलना।
- ब्लीडिंग के दौरान असहनीय दर्द होना।
मेनोरेजिया के कारण
- हारमोंस का अनियंत्रित होना।
- रक्त से संबंधित कोई बीमारी होना।
- थायराइड होना।
- गर्भाशय या अंडाशय से संबंधित कोई बीमारी होना।
- जीवन शैली में कोई समस्या होना जैसे कि तनाव आदि।
मासिक धर्म में माता-पिता की अहम भूमिका
पुराने जमाने में लड़कियों को मासिक धर्म के बारे में पहले कोई ज्ञान नहीं होता था और अचानक से उन्हें मासिक धर्म हो जाता था जिसके कारण लड़कियां यह सब देख कर डर जाती थी और तनाव ग्रस्त हो जाती थी। डर, भय, चिंता के कारण अपने घर वालों को भी बताने से कतराती थी परंतु आज का जमाना बदल गया है।
आज की लड़कियों को मासिक धर्म के बारे में कई तरीकों से बताया जाता है जैसे कि स्कूल में शिक्षकों द्वारा, डॉक्टर द्वारा, किसी पत्रिका या किताबों द्वारा या फिर कोई छोटी लघु फिल्म के द्वारा भी इसके बारे में पूरी जानकारी दी जाती है। माहवारी क्या होती है, महावारी के समय लड़की के शरीर में क्या-क्या होता है, महावारी आने पर क्या करना चाहिए, उस समय अपने शरीर की सफाई कैसे रखनी चाहिए आदि के बारे में बाते जाता हैं।
परंतु इन सब बातों के बावजूद भी लड़कियों के मन में और कई प्रश्न उठते हैं। इसलिए माता-पिता होने के नाते आपका यह कर्त्तव्य है कि आप उनके प्रश्नों के उत्तर बने और उन्हें अच्छी तरह से समझाएं ताकि उन्हें मासिक धर्म के बारे में कोई शंका ना रहे।
एक मां अपनी बेटी को निसंकोच इस बात को बता सकती है जब उसकी बेटी की उम्र 8 या 9 साल की हो जाए। इस उम्र में वह उसे अच्छे से समझा सकती है ताकि जब उसके पहली बार मासिक धर्म आये तो उसको कोई शंका ना हो और वह उसको अच्छी तरह से हैंडल कर सके।
मासिक धर्म के बारे में बात कैसे करें?
लड़कियां मासिक धर्म होने पर या उससे पहले, स्कूल में अपनी सहेलियों से आपस में बात करते हुए सुनती हैं तो उनके मन में बहुत सारे सवाल होते हैं परंतु वह अपनी मां से पूछने में शर्म महसूस करती है और यही हाल मां का भी होता है। वह भी अपनी बेटी से यह सब बातें करने में झिझक महसूस करती है परंतु यदि आप अपनी बेटी को सरल भाषा में समझाती है तो वह अवश्य समझ जाएगी।
शुरुआत में आप सिर्फ जरूरी बातों पर ही ध्यान दें और उन्हें यह बताएं कि महावारी कितने सप्ताह बाद आती है, कितने दिन तक रहती हैं और इसमें कितना रक्त प्रवाह होता है। साथ ही आप उन्हें इन सबसे निपटने के सुझाव बताएं। आप उसे बारीकी से समझाने के लिए कोई पुस्तक या पत्रिका आदि भी पढ़ने के लिए दे सकती हैं।
अपनी बेटी से मासिक धर्म के बारे में बात करने के कुछ टिप्स
- आप अपनी बेटी से अपना अनुभव साँझा करें। अगर आप अपना अनुभव उसे बताती है तो आप उसकी भावनात्मक रूप से सहायता कर सकती हैं।
- आप अपनी बेटी को सब बातें समझाएं जैसे अगर उन्हें मासिक धर्म स्कूल में आ जाए तो उन्हें क्या करना चाहिए, उन्हें क्या इस्तेमाल करना चाहिए और कैसे इस्तेमाल करना चाहिए, आदि सभी कारगर सुझाव दें।
- सबसे पहले आप यह पता करें कि आपकी बेटी को इसके बारे में कोई बात जानकारी है या नहीं और आपको भी इस बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए।
- जब आप अपनी बेटी को मासिक धर्म के बारे में समझाती है तो उनसे घुमा फिरा कर बात ना करें बल्कि उन्हें सीधी और सरल बातों से समझाएं, इससे वह भी बहुत जल्दी समझ जाएगी।
- जब आप अपनी बेटी को मासिक धर्म के बारे में बताती हैं तो यह न समझे कि बस एक बार बात करी, उसे समझाया और हो गया खत्म। ऐसा बिल्कुल नहीं है बल्कि आप अपनी बेटी को कहें कि वह हर महीने अपने पीरियड के बारे में आपको बताएं। आप भी उन्हें समझाना जारी रखें क्योंकि जरूरी नहीं है कि पीरियड हर बार समान समय और समान स्थिति में आए। इसलिए आप जब भी उसे जरूरत हो उसे सलाह देती रहें और उससे इसके बारे में पूछती भी रहे।
महावारी ना होना
डॉक्टरों का मानना है कि युवा लड़कियों में महावारी का समय पर शुरू ना होना शारीरिक असामान्यता की वजह से भी हो सकता है। कुछ में नियमित रूप से आती हुई महामारी अचानक से रुक जाती है तो इसे आमीनॉरिया कहते हैं। जिन लड़कियों में महावारी समय पर शुरू नहीं होती उसका कारण है कि उसके प्रजनन प्रणाली के अंग कमजोर है परंतु यदि माहवारी नियमित रूप से आते-आते रुक जाती है यह एक प्रकार की बीमारी पीसीओडी का संकेत हो सकता है।
पीसीओडी (PCOD) क्या होती है?
पीसीओडी यानी पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिसऑर्डर एक हार्मोन की बीमारी है जिसमें अंडाशय में बहुत छोटे-छोटे थैलियों के बनने के कारण वे नियमित रूप से अंडे नहीं बना पाते हैं। अंडों के रिलीज न होने से महावारी रुक जाती है जिससे मासिक चक्र में अनियमितता पैदा हो जाती है। इस बीमारी का उत्पन्न होना यानी हारमोंस में असंतुलन का होना माना जाता है।
पीसीओडी के लक्षण
- अनियमित महावारी होना।
- लंबे समय तक महावारी ना होना।
- शरीर और चेहरे पर बहुत सारे बालों का उगना और बहुत सारे मुहासे होना।
अगर आप समय रहते इन सब लक्षणों को पहचानते हुए समय पर अपना इलाज करवाती है तो आप समस्या से निदान पा सकती है।
महावारी के समय अधिक पीड़ा होना
महावारी में अधिक पीड़ा होना एक आम बात है। कई बार पीड़ा इतनी होती है कि महिला अपने रोजमर्रा के काम नहीं कर पाती और लड़कियों को स्कूल या कॉलेज से छुट्टी करनी पड़ती है। परंतु महावारी के समय इतना दर्द होना यह कोई सामान्य बात नहीं है। ऐसा होने पर महिला को अपनी जांच अवश्य करवा लेनी चाहिए क्योंकि इससे dysmenorrhea एंडोमेट्रियोसिस जैसी गंभीर बीमारी होने के संकेत भी हो सकते हैं। सही समय पर जांच करवाने से हम आने वाली बीमारी को टाल सकते हैं।
गर्भधारण करने पर क्या होता है?
हर महीने महिला का शरीर गर्भधारण करने के लिए उसे तैयार करता है। गर्भाशय की परत फर्टिलाइजर अंडों को लेने के लिए मोटी हो जाती है और जब यह अंडा नर शुक्राणु से मिलकर गर्भधारण करता है तभी जाकर यह गर्भाशय की परत से लगकर बढ़ने लगता है क्योंकि इसे इस परत से पोषण मिल रहा होता है। यह झड़ता नहीं है और प्रसव होने तक यानी 9 महीने तक मासिक धर्म रुक जाता है। जब महिला का प्रसव हो जाता है तो इस परत का काम खत्म हो जाता है और तब यह झड़ कर योनि से बाहर निकल जाती है।
मासिक धर्म की महिला के जीवन में एक अहम भूमिका होती है और यह महिला के जीवन भर साथ चलती है परंतु एक समय ऐसा भी आता है जब यह महिला का साथ छोड़ देती है जिसे मीनोपॉज कहते हैं।
मीनोपॉज क्या होता है?
जब महिला की उम्र 45 से 55 साल की उम्र होती है तो मासिक धर्म महिला को पूरी तरह से आना बंद हो जाता है इसे मीनोपॉज कहते हैं। महिलाओं का अंडाशय एक उम्र के बाद अंडे बनाने बंद कर देता है जिससे गर्भाशय की परत मोटी होना बंद हो जाती है और महावारी आनी बंद हो जाती है। इसका मतलब यह है कि अब वह महिला मां नहीं बन सकती।
मीनोपॉज के शुरू होने से पहले भी महिला के शरीर में कई बदलाव आते हैं और उसके शरीर में कई तरह के लक्षण दिखाई देते हैं, जैसे कि:
- अचानक से तेज गर्मी लगना या नींद ना आना।
- बालों का झड़ना।
- योनि में सूखापन महसूस होना और महिला की मानसिक स्थिति में बदलाव आना।
जब महिला के शरीर में मोनोपॉज शुरू होता है और यह सब बदलाव आते हैं तो उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है और उसके लिए यह सहन करना मुश्किल हो जाता है परंतु अगर महिला को इन सब बातों के बारे में पूरी जानकारी हो और अपनों का साथ हो तो वह इस समस्या से भी निपट सकती है।
इसे भी पढ़ें: