भारत की 15 महिला स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें हम शायद भूल चुके हैं!
भारत को हमेशा ”सोने की चिड़िया” कहा जाता था। इस कारण हमारे देश पर पर शासन करने के लिए भी कई लोग आए। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी 1600 इस्वी में व्यापार करने के लिए भारत आई लेकिन वे देश के राजनीतिक शासक बनने लगे। उन्होंने भारतीयों के खिलाफ कानून बनाए और शिक्षा, नौकरी और दैनिक जीवन में भेदभाव किया। आज़ादी से पहले भारतीयों को इतनी परेशानियों का सामना करना पड़ा और पूरे देश को इसका नुकसान हुआ।
क्या आपने कभी सोचा है कि भारतीयों को ब्रिटिशों के खिलाफ लड़ने के लिए एकजुट कैसे किया गया?
हम हमेशा अपने स्वतंत्रता संघर्षों को याद करते हैं जिन्होंने हमारे देश को अंग्रेजों से मुक्त किया। कुछ स्वतंत्रता सेनानी जैसे: सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल हैं लेकिन कुछ स्वतंत्रता सेनानी ऐसे भी हैं जिनके नाम हमे पता नहीं है, लेकिन वे ब्रिटिश राज के खिलाफ प्रमुखता से लड़े। कुछ महिला स्वतंत्रता सेनानी थीं जिन्होंने हमारे देश को स्वतंत्र कराने के लिए काम किया। ये महिला स्वतंत्रता सेनानी हैं जिन्होंने हमारे देश के लिए एक बड़ा योगदान दिया है।
आइए हम इन महिलाओं को याद करते हैं जिन्होंने साहस के साथ अपने देश के लिए संघर्ष किया।
#1. बेगम रोयेका (Begam Royeka)
जन्म: 9 दिसंबर, रंगपुर जिला, भारत (वर्तमान बांग्लादेश)
मृत्यु: 9 दिसंबर 1932, कोलकाता, भारत
वह पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी हैं जिन्होंने लैंगिक समानता के लिए लड़ाई लड़ी। वह उस समय लड़ी जब आज़ादी मिलना बहुत मुश्किल था। उन्होंने हमेशा कहा कि पुरुषों और महिलाओं के साथ समान रूप से व्यवहार किया जाना चाहिए। उन्होंने उपन्यास, कविता, लघु कथाएँ और निबंधों में इस बारे में लिखा था। उन्होंने यह भी कहा कि महिलाओं को उचित शिक्षा दी जानी चाहिए ताकि महिलाएं आगे बढ़ सकें।
#2. सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu)
“हम उद्देश्य में गहरी ईमानदारी, भाषण में अधिक साहस और कार्य में ईमानदारी चाहते हैं।"
जन्म: 13 फरवरी 1879, हैदराबाद
मृत्यु: 2 मार्च 1949, लखनऊ
सरोजिनी नायडू एक कवि थीं और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रसिद्ध महिला थीं।
विदेश में अध्ययन करने के लिए उन्हें स्कॉलरशिप मिली क्योंकि उन्होंने 'माहेर मुनीर' नाटक लिखा था। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की दूसरी महिला अध्यक्ष थीं और स्वतंत्रता के बाद भारतीय राज्य की पहली महिला राज्यपाल भी बनी। उन्होंने एमके गांधी आंदोलन और अन्य का समर्थन किया जैसे कि मोंटगु-चैम्सफोर्ड रिफॉर्म्स, खिलाफत इशू, साबरमती पैक्ट व सिविल डिसओबेडिएंस मूवमेंट। इन राजनीतिक गतिविधियों के कारण उन्हें 21 महीने जेल में भी बिताने पड़े।
#3. कित्तूर रानी चेन्नम्मा (Kittur Rani Chennamma)
“मुझे टैक्स क्यों देना चाहिए? क्या आप मेरे भाई, बहन, रिश्तेदार या दोस्त हैं?”
जन्म: 23 अक्टूबर, 1778, बेलगाम
मृत्यु: 21 फरवरी 1829, बैल्हंगल
वह भारत की स्वतंत्रता सेनानी और पहली शासक महिला स्वतंत्रता कार्यकर्ता थीं। वह घुड़सवारी, स्वोर्ड फाइटिंग और तीरंदाजी में पेशेवर प्रशिक्षित थीं। वह एक छोटे से गाँव में पैदा हुई और देसाई परिवार के राजा मल्लासराजा से 15 साल की उम्र में शादी कर ली। अपने पति और बेटे को खोने के बाद, उन्हें अपने राज्य का ख्याल रखना पड़ा और 1824 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन से बचा लिया। वह अंतिम युद्ध में सफल नहीं हुई लेकिन सभी के दिल में स्वतंत्रता की भावना शुरू कर गयी।
#4. झलकारी बाई (Jhalkari Bai)
जन्म: 22 नवंबर 1830, झांसी
मृत्यु : 1890, ग्वालियर
रानी लक्ष्मी बाई के बारे में हम सभी जानते हैं, उनकी बहादुरी जो पुरुषों और महिलाओं के लिए एक प्रेरणा है लेकिन हम झलकारी बाई के बारे में नहीं जानते जो लक्ष्मीबाई की तरह ही साहस से भरी थी।
इनका जन्म एक शुद्र परिवार में हुआ था। वह रानी लक्ष्मी बाई से मिलती-जुलती थी और उसके पास लड़ाई के बड़े कौशल थे। वह 'दुर्गा दल' में नेता भी थीं। एक बार उसने जंगल में एक बाघ के साथ लड़ाई की और कुल्हाड़ी से उसे मार डाला। झाँसी की लड़ाई में उनकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका थी। उन्होंने खुद को रानी लक्ष्मी बाई की तरह बनाया और अंग्रेजो के विरुद्ध लड़ी।
#5. उमाबाई कुंदापुर (Umabai Kundapur)
जन्म: 1892
मृत्यु: 1992, हुबली
इनकी 9 साल की छोटी सी उम्र में शादी करा दी गयी लेकिन अपने ससुर के समर्थन के कारण इन्होने अपनी पढ़ाई मुंबई के एलेक्जेंड्रा हाई स्कूल में की। यह 'भगिनी मंडल' की संस्थापक थीं। वह हिंदुस्तानी सेवा दल की महिला शाखा की नेता भी थीं। उन्होंने सभी सम्मानों से इनकार कर दिया जो उन्हें मिल सकते थे। उन्होंने जीवन में प्रसिद्धि पाने के लिए कभी काम नहीं किया। उन्होंने केवल अपने देश के लिए निस्वार्थ सेवा देने पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने ब्रिटिशों से स्वतंत्रता सेनानियों को आश्रय प्रदान किया।
#6. सावित्री बाई फुले (Savitri Bai Phule)
जन्म: 3 जन्म 1831, नायगाँव
मृत्यु: 10 मार्च 1897, पुणे
सविता बाई फुले भारत की पहली बालिका स्कूल में पहली महिला शिक्षक बनी। उन्होंने 19वीं शताब्दी में अपने पति, ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर महिलाओं को शिक्षित ना करने की परंपरा को तोड़ा। ब्रिटिश शासन में लड़कियों को पढ़ाना अच्छा नहीं माना जाता था। उन्हें लोगों की आलोचना का सामना करना पड़ा। कुछ लोगों ने उस पर पत्थर, मिट्टी, अंडे, टमाटर, गोबर और गंदगी भी फेंकी लेकिन वह लड़कियों को लगातार पढ़ाती रही। उन्होने महाराष्ट्र में एक बड़ा सामाजिक परिवर्तन लाया और वह साहित्य में अपने काम के लिए बहुत जानी जाती है।
#7. कैप्टन लक्ष्मी सहगल (Capt. Laxmi Sehgal)
जन्म: 24 अक्टूबर 1914, मालाबार जिला
मृत्यु: 23 जुलाई, कानपुर
उन्होंने न केवल भारत की पहली भारतीय महिला रेजिमेंट का नेतृत्व किया बल्कि वह एक डॉक्टर, सामाजिक कार्यकर्ता भी थीं। 92 वर्ष की आयु तक, वह बहुत कम शुल्क पर कानपुर में रोगियों की देखभाल करती थी। इनका जन्म मद्रास में वकील परिवार में हुआ था। यह वह समय था जब समाज में छुआछात थी, तब उन्होंने एक आदिवासी लड़की का हाथ पकड़ा और उसे खेलने के लिए कहा। वह हमेशा अपने दिल की सुनती थी। उन्हें समाज में योगदान के लिए दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण मिला।
#8. मूलमति (Moolmati)
वह साधारण महिला थी। वह राम प्रसाद बिस्मिल की माँ थीं। बिस्मिल ने 1928 में भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, राजगुरु और कई अन्य लोगों के साथ हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन बनाया। उनके बेटे को ब्रिटिश शासकों ने मौत के घाट उतार दिया लेकिन इसका उन पर कोई असर नहीं हुआ। बल्कि उन्हें अपने बेटे पर गर्व महसूस हुआ। यह भारत की ऐसी बहादुर माताओं की वजह से है कि कई बेटों ने बिना किसी शिकायत और खुशी से देश की सेवा की।
#9. उदा देवी (Uda Devi)
जन्म: लखनऊ
मृत्यु: नवंबर 1857, लखनऊ
उदा देवी एक साहसी, निर्भीक महिला थीं। वह रानी बेगम हज़रत महल से मिलने युद्ध के लिए गई थी। यह वह समय था जब भारतीयों में ब्रिटिश प्रशासन के प्रति गुस्सा था। बेगम ने युद्ध की तैयारी के लिए उदा देवी की मदद की।
अपने पति के साथ उदा देवी ने युद्ध में बहादुरी से काम लिया। वह एक पेड़ पर चढ़ गई और उन्होने 32 या 36 ब्रिटिश सैनिकों की गोली मारकर हत्या कर दी। उनकी बहादुरी के कारण कैंपबेल जैसे अधिकारियों ने उनके शव पर अपना सिर झुका दिया। उसे 1857 के भारतीय विद्रोह के 'दलित वीरांगनाओं' के रूप में याद किया जाता है।
#10. जानकी अथी नाहप्पन (Janaky Athi Nahappan)
जन्म: 1925, कलुला लमपुर, मलेशिया
मृत्यु: 2014, छेरस, कौला लुमपुर, मलेशिया
वह एक तमिल परिवार में पैदा हुई थी, जिसके पास बहुत सारा पैसा था। उन्होंने अपनी सोने की कमाई दान कर दी जब सुभाष चंद्र बोस ने कहा कि लोगों को भारतीय स्वतंत्रता हासिल करने के लिए जो कुछ भी है, वह देना होगा। बहुत से लोग उनके बारे में नहीं जानते हैं लेकिन वह मलेशियन भारतीय कांग्रेस के संस्थापक सदस्य थे।
वह भारतीय राष्ट्रीय सेना में शामिल होने वाली पहली महिलाओं में से एक थीं, जिन्हें जापानी लोगों के साथ भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए आयोजित किया गया था। उन्हें भारत सरकार द्वारा 2000 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।
#11. अम्मू स्वामीनाथन (Ammu Swaminathan)
जन्म: 1894, भारत
मृत्यु: 1978, पलक्कड़ जिला
वह कभी स्कूल नहीं गई। शादी के लिए उन्हें बुनियादी शिक्षा मिली थी। उनकी शादी डॉ सुब्रमण्य स्वामिनाधन से हुई। अपने पति के समर्थन के साथ उन्होंने अपनी पढ़ाई की और भारत की आजादी के पूर्व संघर्ष में एक लोकप्रिय चेहरा बन गईं। वह भारतीय स्वतंत्रता के दौरान भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक कार्यकर्ता थी। वह भारत की संविधान सभा के सदस्य भी थे। वह भारतीय संविधान के प्रारूपण के लिए एक सदस्य बन गई।
#12. मातंगिनी हाजरी (Matangini Hazri)
जन्म: 19 अक्टूबर, 1870, तमलुक
मृत्यु: 29 सितंबर 1942, तमलुक
उनका जन्म एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। निजी जीवन खराब होने पर भी उनका देश के प्रति बहुत योगदान था। वह 18 साल की उम्र में और बिना किसी संतान के विधवा हो गई थी। उन्हें 'गांधी बरी' के नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ बूढ़ी लेडी गांधी है। भारत छोड़ो आंदोलन में, 71 वर्ष की आयु में उनके साथ 6 हजार समर्थक थे। उन्हें तमलुक पुलिस स्टेशन के सामने ब्रिटिश भारतीय पुलिस ने गोली मार दी थी। अपनी अंतिम सांस तक उन्होंने "वंदे मातरम" का जाप किया और भारतीय ध्वज को पकड़ के रखा।
#13.नेली सेनगुप्ता (Nellie Sengupta)
जन्म: 1886, कैम्ब्रिज, यूनाइटेड किंगडम
मृत्यु: 1973, कोलकाता
जब वह एक युवा लड़की थी तब उन्हें डाउनिंग कॉलेज में एक युवा बंगाली छात्र जतिंद्र मोहन सेनगुप्ता से प्यार हो गया। नेली एक अंग्रेजी वूमन थी जो खादी बेचने के लिए स्वतंत्रता-पूर्व समय के दौरान घर-घर जाती थी।
माता-पिता के विरोध के बावजूद, उन्होंने जतिंद्र से शादी की और उनके साथ कलकत्ता वापस आ गई। उनके पति एक वकील थे और एम.के. गांधी द्वारा शुरू किए गए स्वतंत्रता आंदोलन में भी शामिल हुए। उन्होंने भी अपने पति का साथ दिया। वह अपना विरोध दिखाने के लिए सड़को पर उतर गई। नेली को कांग्रेस के अध्यक्ष (President of Congress) के रूप में भी नियुक्त किया गया था। यह वह समय था जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को नमक सत्याग्रह के दौरान गिरफ्तार किया गया था।
#14. रानी गाइदिन्ल्यू (Rani Gaidinluiu)
“हम स्वतंत्र लोग हैं, गोरो को हम पर राज नहीं करना चाहिए”
जन्म: 26 जनवरी 1915, मणिपुर
मृत्यु: 17 फरवरी 1993, मणिपुर
13 साल की उम्र में, उन्होंने अपनी जनजाति के लोगों के बीच प्रचार करना शुरू कर दिया। वह हेराका आंदोलन का हिस्सा थी। यह आंदोलन नगा आदिवासी आंदोलन को वापस लाने के लिए था। उन्होंने ब्रिटिशों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। इस समय, वह 17 साल की थी। आंदोलन की वजह से उन्हें 14 साल तक जेल में रहना पड़ा। उनके अनुयायियों में बढ़ावा हुआ जिसने अंग्रेजों को डरा दिया। इस वजह से उन्हें खुद को छुपाना पड़ा। उनके द्वारा किए गए बलिदानों के कारण, वह जवाहरलाल नेहरू के प्रिय थी।
#15. सुचेता कृपलानी (Sucheta Kriplani)
जन्म: 25 जून 1908, अंबाला
मृत्यु: 1 दिसम्बर 1974, नई दिल्ली
वह एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में अंबाला में पैदा हुई थीं, उन्होंने इंद्रप्रस्थ कॉलेज और पंजाब विश्वविद्यालय में अपनी पढ़ाई पूरी की। वह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में संवैधानिक इतिहास की एक व्याख्याता बन गईं। वह पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। वह एक निडर महिला थी। वह गांधी जी के विचारों में विश्वास करती थीं। वह भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा थीं। उन्होंने विभाजन के दंगों के दौरान अन्य लोगों के साथ काम किया। सुचेता भारत के संविधान के चार्टर को निर्धारित करने का एक हिस्सा बन गयी।
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