‘मैंने हमेशा अपनी बहन को कमजोर माना, मैं गलत थी’
बड़ा होने के दौरान, मैं हमेशा सोचती थी कि मैं अपनी जुड़वा बहन मोनिका से बेहतर हूं। पढ़ाई करते हुए मैं हमेशा मोनिका से अधिक अंक प्राप्त करती थी, मेरे पास उससे अधिक दोस्त थे और मैने उससे जल्दी अपना करियर निर्धारित कर लिया था। मुझे आज भी याद है कि किस तरह मैने स्कूल और कॉलेज में उसका बचाव किया यह सोचकर की वह कमजोर है और अपने लिये लड़ नहीं सकती
लेकिन कुछ साल बाद ही मुझे अहसास हो गया कि मैं गलत थी। कुछ साल के बाद ही मैने उसकी ताकत और उसके भीतर छिपे हुए योद्धा को देखा।
अक्टूबर 2015 में मेरे पास उसका फोन कॉल आया। जैसे ही उसने मुझे एक बुरी खबर दी, जिसे सुनकर मैं एक कुर्सी पर गिर गयी। फिर भी दूसरे छोर से आती एक स्पष्ट आवाज मुझे सबसे बुरी खबर दे रही थी। उसकी आवाज मजबूत और स्थिर थी जिसकी मैं उम्मीद या कल्पना भी नहीं कर सकती थी। अविश्वसनीय रूप से उसने कहा, ‘‘ठीक है, मेरी रिपोर्ट आयी थी, मुझे ल्युकेमिया है’’।
‘‘क्या?’’ मैंने कांपती आवाज से कहा, जबकि उसने आत्मविश्वास के साथ मुझे बताना जारी रखा, यह एक तीव्र मैलॉइड ल्यूकेमिया है, यह एक नियंत्रित किये जा सकने वाली तरह का कैंसर है जिसे कीमोथैरेपी से ठीक किया जा सकता है। मुझे उस पर विश्वास हो गया। मुझे मोनिका से ऐसा साहस दिखाने की उम्मीद नहीं थी लेकिन वह इतनी शांत लग रही थी कि मुझे यकीन हो गया था कि उसका कैंसर इलाज किये जाने से ठीक हो जायेगा।
उसके उपचार के दौरान, मैंने उसकी ताकत और संभावनाओं को अवसरों में बदलते हुए देखा।
कीमोथेरेपी कराये जाने के बाद उसकी हालत में सुधार हुआ। लेकिन दुख की बात है कि पांच महीनों के भीतर ही कैंसर का राक्षस फिर से जाग गया गया और इस बार वह और अधिक आक्रामक रूप मे हमारे सामने आया। इस बीमारी का एकमात्र उपचार अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण (बोन मैरो ट्रांसप्लांट) था और यहां तक की डॉक्टरों को भी मोनिका के ठीक होने की उम्मीद नहीं थी। लेकिन हम प्रत्यारोण कराने की दिशा में आगे बढ़े और मेरी मूल कोशिकाएं उसकी नसों में डाल दी गयीं। उपचार के दौरान, उसने भी किसी अन्य कैंसर से लड़ने वाले योद्धा की तरह, प्रेरणा और प्रेरणास्रोत खोजने के लिये इंटरनेट को देखा। लेकिन जब भी उसने आशा पाने के लिये इंटरनेट की ओर रूख किया तो उसे सिर्फ भयानक पूर्वानुमान और बीमारी के सामने हार मानने वाले लोगों के निराशाजनक अध्ययन ही मिले। कैंसर के रोगी और उसके परिजनों के लिये इस बीमारी पर मिली सफलता की एक कहानी भी जीवन मिलने के समान होती है।
उसकी निराशा के लिए, वहां एक भी किनारा नहीं था जिसे पकड़ कर वह आशा का सहारा पा सकती थी। लेकिन फिर, अक्सर प्रेरणा देने वाले विचार विपत्ति के गर्भ से ही पैदा होते हैं। उसने भयभीत होने की बजाये अपनी आशाएं बनाये रखने का फैसला किया।
मोनिका ने अपने बोन मैरो ट्रांसप्लांटआईसीयू से ही खुद ही एक मंच बनाया जो लोगों में जीवित रहने के लिये जागरूकता बढ़ाने की दिशा में काम करता है, जो कैंसर से प्रभावित लोगों की मदद करता है। उसने कैंसर से लड़ाई लड़ने और उस पर जीत हासिल करने वाले लोगों की वास्तविक कहानियों के माध्यम से आशा की खोज की। लाखों कैंसर योद्धाओं जो यह विश्वास करते थे कि कैंसर का इलाज नहीं किया जा सकता, में उम्मीद जगाने के लिये वह एक वेबसाइट ‘कैंसर से भी मजबूत’ लेकर आयी।
इस कलंक को मिटाने के लिये, मोनिका ने इस बीमारी पर जीत हासिल करने वाले कैंसर योद्धाओं की शानदार कहानियों को दुनिया के सामने लाने का फैसला किया और प्रत्येक कैंसर रोगी को इस युद्ध को लड़ने और जीत हासिल करने को प्रेरित किया। आज तक, कैंसर से भी मजबूत वेबसाइट कैंसर से छुटकारा पाने वाली दिल जीतने वाली और प्रेरणादायक कहानियों के साथ दुनिया भर से साहस और दृढ़ संकल्प की असंख्य कहानियां सामने लायी है।
हालांकि मोनिका अब भी कैंसर से जुझ रही है और वह उसे कड़ी चुनौती दे रही है। उसके डॉक्टर उसे हठी (_दृढ या अटल) कहते हैं। अपने सकारात्मक दृष्टिकोण, डॉक्टर पर विश्वास और एक स्वस्थ जीवनशैली के साथ मोनिका ने कैंसर को नियंत्रण में रखा है। आज मैं एक तथ्य को जानती हूं कि मेरी तुलना में वह कहीं ज्यादा मजबूत, चतुर और अधिक दृढ़ संकल्पित है। वह मेरी प्रेरणा और मुस्कुराहट की वजह है।
यह एक व्यक्तिगत कहानी है जो कैंसर से भी मजबूत वेबसाइट की सह-संस्थापक और कहानी संपादक सोनिका बख्शी द्वारा लिखी गई है। पूर्व टीवी पत्रकार और एक पूर्णकालिक प्रोफेशनल पीआर सोनिका को यात्रा करने का पैशन है। वह उभरती हुई मैराथनर हैं जिनको लिखना और पढ़ना पसंद है।
* 22 अगस्त को मोनिका कैंसर के साथ चल रही अपनी लड़ाई हार गयीं, लेकिन जीवन को भरपूर जीने में वह जीत गयीं। मोनिका, हम शीरोज में आपको बहुत याद करेंगे। उसकी आत्मा को शांति मिले।