मैं सुन तो नहीं सकती, पर मुझे रोक पाना नामुमकिन है!

Last updated 8 Apr 2019 . 1 min read



मैं सुन तो नहीं सकती, पर मुझे रोक पाना नामुमकिन है! मैं सुन तो नहीं सकती, पर मुझे रोक पाना नामुमकिन है!

यह कहानी भारत की पहली UN Volunteer की है जो सुनने में असमर्थ है। रुपमनी छेतरी का जन्म नेपाल के एक गाँव में हुआ था। उनके परिवार में वह पहली संतान थी जो बधिर पैदा हुईं थी। उनकी डेफ़्नेस को दूर करने के लिए उनके माता पिता ने कई जतन किए। यहाँ तक कि उन्होंने बाबाओं को भी सम्पर्क किया । कई मंदिरों के दर्शन भी किए । पर कोई सफलता हाथ नहीं लगी। रुपमनी के परिवार वाले नेपाल सेदार्जीलिंग चले आए लेकिन फिर भी उनके संसार में कोई बदलाव नहीं आया क्यूँकि उनका सारा ध्यान रूपमनी के डेफ़्नेस की तरफ़ था और ना कि रुपमनी की एडुकेशन की तरफ़।

रुपमनी कहती हैं - न रुपमनी उनकी बात समझ पाती थी और न ही उनके माता पिता उनकी बात समझ पाते थे । और तो और, दादी ने रुपमनी के पापा को रुपमनी की पढ़ाई के लिए पैसे व्यर्थ न करने की सलाह भी दी थी।

लेकिन रुपमनी बताती हैं कि वे बहुत ही भाग्यशाली हैं कि उनके पापा ने दादी की सलाह न मानते हुए रुपमनी को पढाने के बारे में सोचा। लेकिन छोटे शहर और आर्थिक तंगी की वजह से स्पेशल स्कूल में दाख़िला नहीं करा सके थे।

रुपमनी डेफ़ कम्यूनिटी में प्रयोग किए जाने वाले सांकेतिक भाषा की सबसे दृढ़ और प्रबल अभिवक्ता हैं।

इस भाषा में हाथों की हरकतें, शारीरिक हाव भाव और चेहरे के भाव के माध्यम से बातचीत करते हैं । और रुपमनी का यह कहना है कि बधिरों को ही नहीं, बल्कि उनके परिवार, पड़ोसी और दोस्तों को भी यह सीखना चाहिए जिससे उन्हें उनकी बातें आसानी से समझ में आएँगी।

आज रुपमनी ज़िंदगी में काफ़ी आगे बढ़ चुकी हैं लेकिन उनकी निजी ज़िंदगी अभी भी जस की तस है क्यूँकि वे अपने परिवार को अपनी भावनाएँ ना ही समझा सकती हैं और ना ही समझ सकती हैं ।

rupmani at un summit

रुपमनी कहती हैं,

“ मेरी बहन ने सांकेतिक भाषा बोलने की कोशिश की थी, परंतु वह बहुत पुरानी बात है। अब वे इज़राएल में रहती हैं और अबतक भाषा भूल चुकी होंगी। मेरे दो भाईओं ने भी Skype/IMO/ FB मेसेंजर से बात करने के लिए बस बेसिक सांकेतिक भाषा सीखा है जिसकी वजह से रूपमनी दुनिया में तो बहुत ही ऊँचे मक़ाम पर पहुँच चुकी हैं लेकिन फिर भी अपनों से बहुत दूर हैं।”

रुपमनी से बात करते वक़्त ऐसा लगा जैसे वे परिवार से दूर होने की वजह से बहुत पछताती हैं। इसीलिए वह UN Volunteer की ज़िम्मेदारी के बारे में बात करने के बजाय बार बार बचपन की बातें याद कर रही थीं । रुपमनी कहती हैं कि उनके पेरेंट्स ने उन्हें बहुत अच्छी एडुकेशन दी, लेकिन जब भी वो सांकेतिक भाषा से कुछ बातचीत करना चाहती थीं, लोग उनपर हँसते थे और उन्हें “पागल” बुलाते थे। वे बहुत डरती थीं कि ऐसे माहौल में वे ज़िंदगी में अपनी पहचान कैसे बना पाएँगी।

रूपमनी कहती हैं “मुझे याद है कि उन दिनों मैं बेहद निराश और दुखी रहती थी। मैं हमेशा अपने आप से सवाल करती रहती थी कि ऐसा क्या करूँ जिस से मैं परिवार से और दुनिया से बात कर सकूँ। लेकिन उम्मीद की किरण तब दिखी जब मेरा एडमिशन डेफ़ के स्पेशल स्कूल में हुआ।

समस्या यहीं समाप्त नहीं हुई क्यूँकि इस स्कूल में भी टीचर्स बोलने के लिए ज़ोर देते थे। वे मेरी उँगलियों पर मारते थे जब मैं अपनी सांकेतिक भाषा में उन्हें कुछ भी कहती थी। मैं डर गई थी और बहुत ही निराश हो गई थी। मेरे परिवार वाले अंततः तब ख़ुश हुए थे जब मेरे टीचर्स के काफ़ी प्रयासों के बाद मैंने दो शब्द “आमा और बूबा” बोला था।

रुपमनी की कहानी अत्यंत दुःख भरी और रोंगटे खड़े कर देने वाली हैं । उनका संघर्ष अभी ख़त्म नहीं हुआ था क्यूँकि रुपमनी कहती हैं कि दूसरे स्कूल में वे अकेली बधिर लड़की थीं और टीचर्स उन्हें बिना सांकेतिक भाषा के लिखना सिखाने के बहुत प्रयत्न करने के बावजूद असफल रहे जिससे रुपमनी अत्यंत निराश और दुखी हो गई थी ।

rupmani getting award

उन्होंने शादी के लिए डेफ़ पार्ट्नर चुना, लेकिन वह कहानी भी दुखद है । रूपमनी का मानना है कि शादी में आपसी तालमेल सबसे महत्वपूर्ण होती है। उन्होंने अपने लिए डेफ़ पार्ट्नर चुना तो लेकिन शादी से पहले शायद और वक़्त साथ गुज़ारना चाहिए था। रुपमनी शादी के विषय में अधिक चर्चा नहीं करना चाहती थीं ।

इसके बाद रुपमनी ने कुछ आश्चर्यजनक आँकड़े बताए । उन्होंने कहा कि “देश में बधिरों - (सिर्फ़ बधिर, मूक - बधिर नहीं ) की सबसे बड़ी चुनौती “कम्यूनिकेशन” है । कुछ 18 million बधिरों के लिए देश में केवल 250 इंटर्प्रेटर्स हैं जिसका मतलब है कि हर 72000 बधिरों के लिए एक इंटर्प्रेटर है । ऐसे में रुपमनी इस मक़ाम तक कैसे और किन मुश्किलों का सामना करते हुए पहुँची?

रुपमनी कहती हैं “मैं नैशनल असोसीएशन औफ़ डेफ़” से जुड़ी । कई लोगों को जानकारी नहीं है कि उसकी ऑफ़िस हर राज्य में है । और यहाँ सांकेतिक भाषा सिखाने के मूल्य- रहित प्रोग्राम हैं । मैंने बेसिक कम्प्यूटर ट्रेनिंग नॉएडा डेफ़ सॉसाययटी और दिल्ली के डेफ़ वे फ़ाउंडेशन में लिया। पढ़ाई के बाद मैंने NAD नहीं छोड़ा जबकि NAD और NCRPD की इग्ज़ेक्युटिव member भी बनीं और बधिरों के लिए बेहतर दुनिया बनाने का संकल्प कर लिया ।

रुपमनी कहती हैं “सांकेतिक भाषा तो दूर की बात है, भारत देश में बधिरों को अपने अधिकार की जानकारी तक नहीं हैं । और तो और पुलिस स्टेशन्स जैसी सरकारी संस्थाओं में केस रजिस्टर करने के लिए इंटर्प्रेटर्स भी नहीं होते हैं । इसलिए अभी इस क्षेत्र में काफ़ी कुछ करना है।”

अपने दृढ़ संकल्प से रुपमनी भारत की पहली बधिर महिला है जिनका इंटर्नैशनल UNV में सेलेक्शन March 2017 se March 2018 तक यूक्रेन में हुआ है।

rupamani at un

रुपमनी कहती हैं “मेरा काम यूक्रेनी नागरिक समाज और मेरे संयुक्त राष्ट्र सहकर्मियों के साथ विकलांग महिलाओं के बेहतर समावेश की हिमायत करना था। यूक्रेन में विकलांग महिलाओं के अधिकारों के फोरम में कई महिलाओं ने अपने अनुभव में विकलांग महिलाओं से भेदभाव के उदाहरण साँझा किए।। इसलिए मुझे पता है कि मैं अकेली नहीं हूँ । लेकिन विदेशों में इतने व्यस्त होने के बावजूद उन्होंने देश के काम नहीं छोड़े।

रुपमनी कहती हैं “अभी मैं Inkludo में Signable ऐप develop करने के लिए काम कर रही हूँ जो Video relay service की तरह डेफ़ और इंटर्प्रेटर के बीच यूज़ होता है। इस ऐप में बधिर बैंक या हॉस्पिटल जाते वक़्त, या किसी भी पब्लिक कम्यूनिकेशन में विडीओ कॉल से इंटर्प्रेटरकी मदद ले सकते हैं ।

कभी-कभी, मैं वीकेंड्स में अलग-अलग शहरों और जगहों पर डेफ़ लोगों के लिए वर्क्शाप उन्हें सशक्त करने के लिए करती हूँ ।

जल्द ही Indian sign language डेफ़ कम्यूनिटी की official भाषा बन जाएगी। हर देश अपनी अलग सांकेतिक भाषा का प्रयोग करता है, परंतु बेसिक एक्सप्रेशन और कुछ संकेतों में काफ़ी समानता है । अगर आपको प्रोफ़ेशनल इंटर्प्रेटर बनना है तो दिल्ली, कोयंबत्तूर, हैदराबाद या मुंबई के किसी प्रोफेशनल साइन लैंग़्वेज ट्रेनिंग सेंटर से जुड़ सकती हैं ।

जब मैंने उन्हें चैट पर लिखा कि SHEROES में आपका मेम्बर होना बहुत अच्छी बात है, तो उन्होंने एक बिग स्माइली भेजा । रुपमनी कहती हैं कि उन्होंने SHEROES से उसका काम देखने के लिए जुड़ी थी।

रूपमनी कहती हैं ,“SHEROES के इंक्लूसिव काम से मैं बहुत प्रभावित हुई । मुझे यह बहुत ही सुविधाजनक ऑनलाइन प्लाट्फ़ोर्म लगता है जहाँ महिलाएँ एक दूसरे का समर्थन और एक दूसरे को प्रोत्साहित करती हैं । मुझे शीरोज़ आर्टिकल्स पढ़ना बहुत अच्छा लगता है ।” 

और मैंने कहा कि मुझे आर्टिकल्स लिखने में बड़ा मज़ा आता है। और फिर दोनों ने चैटपर बहुत सारी स्माइली शेयर किया। रूपमनी विकलांग समुदाय के बच्चों की माताओं के ग्रूप में सबसे बड़े प्रेरकों में से एक है।

rupmani post on sheroes

आपको यह जानकर बेहद ख़ुशी होगी कि रुपमनी की SHEROES प्रोफ़ाइल में रुपमनी के कई फ़ोटोग्रैफ़्स हैं । वे अपने आप को Fashionista कहती हैं। नीला और काला उनके पसंदीदा रंग हैं । बॉलीवुड स्टार्स की फ़ैशन सेन्स को फ़ॉलो करती हैं । और कहीं भी जातीं है तो कॉन्फ़िडेन्स, एक स्माइल और फ़ैशनबल बन के जाती हैं। रुपमनी का कहना है कि वे अपने आपको सामान्य सुनने वाले व्यक्ति से किसी भी रूप में कम नहीं समझती हैं ।

रूपमनी! आपके भविष्य के लक्ष्य क्या हैं ? “मैं भारतीय समाज में विकलांगों के लिए बिना किसी लांछन के इंक्लूसिव कम्यूनिटीज़ बनाना चाहती हूँ । मुझे डेफ़ कम्यूनिटीज़ के लिए कुछ करने के लिए अभी कुछ साल और लग जाएँगे । UN एजेन्सी का जर्नलिस्ट बनना मेरा सपना है । मैं बधिरों की आवाज़ बनना चाहती हूँ जिनसे वे अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकें ।

rupmani in blue saree

रुपमनी ने जाते जाते एक प्रेरणादायक संदेश दिया - “यह समझना महत्वपूर्ण है कि सपने पूरे करना संभव है, चाहे सपना कितना भी बड़ा हो । और विकलांगता आपको रोक नहीं सकती है।” विकलांग बच्चों के माता-पिता के लिए सलाह है - बस अपने बच्चों को सशक्त बनाएं और सही तरह की शिक्षा दें। उन्हें खुद पर विश्वास करने में मदद करें। सहानुभूति की कोई आवश्यकता नहीं है। वे कुछ भी हासिल कर सकते हैं ।

हमें विश्वास है की #MeetTheSHEROES सिरीज़ ने आपको बहुत ही प्रभावित किया है। कृपया अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और कॉमेंट में रूपमनी के लिए स्नेह और इस ऑर्टिकल पर अपनी राय दें।

इस लेख के बारे में कुछ ज़रूरी बातें​ -

रूपमणि छेत्री का इंटरव्यू, पुरस्कार विजेता और स्वतंत्र पत्रकार महिमा शर्मा द्वारा किया गया था । यह लेख केवल उनके अंग्रेजी लेख का हिंदी अनुवाद है ।

आप यहाँ पर रूपमणि छेत्री का अंग्रेजी लेख पढ़ सकती​ हैं |


15544718951554471895
Tulika Anand Thakur
मैं बिहार की कवि हूँ और मेरी लेखन प्यार, वास्तविक जीवन के अनुभवों, मातृत्व, दोस्ती, रिश्ते और नारित्व से प्रेरित है ।


Share the Article :